श्री श्री 1008 गौधरदास जी महाराज, गुजराती बलाई समाज के आराध्य संत, एक महान आध्यात्मिक व्यक्तित्व और समाज सुधारक थे। उनका जीवन त्याग, तपस्या, और समाज कल्याण का अनुपम उदाहरण है। उनकी प्रेरणादायक जीवन यात्रा ने न केवल समाज को एकजुट किया बल्कि सेवा और भक्ति का मार्ग भी दिखाया।
गौधरदास जी महाराज का जन्म 1728 में श्री मुलाजी पारेगी और श्रीमती गंगाबाई पारेगी के घर हुआ। उनका परिवार गुजरात से उज्जैन के पास क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित रलायता गाँव में आकर बसा। बालक गौधर का जीवन अत्यंत साधारण और संघर्षपूर्ण था। निर्धनता के कारण उनका अधिकांश समय अपनी गायों को चराने में बीता।
गौधरदास जी महाराज का अध्यात्म की ओर झुकाव उनके बचपन से ही स्पष्ट था। गायों को चराने के दौरान वे हनुमंत मंदिर के साधु मेहरदास जी महाराज से मिले। साधु बाबा ने बालक गौधर को अपने लिए दूध लाने को कहा। जातिगत भेदभाव के बावजूद साधु बाबा ने गौधर के दूध को स्वीकार किया और उन्हें अपने सान्निध्य में लिया।
साधु मेहरदास जी महाराज के आशीर्वाद और मार्गदर्शन में गौधरदास जी ने अध्यात्म और सिद्धियों की गहराईयों को प्राप्त किया। गुरु ने उन्हें अपनी सिद्धियों का उपयोग समाज कल्याण के लिए करने का निर्देश दिया और "श्री श्री 1008" की उपाधि देकर उन्हें आशीर्वादित किया।
गौधरदास जी महाराज ने जातिगत भेदभाव और समाज की कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने समाज को एकजुट करने और परोपकार के लिए अपने जीवन को समर्पित किया। उनका मानना था कि सेवा ही सच्चा धर्म है, और उन्होंने अपने सिद्धियों का उपयोग मानवता के कल्याण के लिए किया।
गौधरदास जी महाराज ने उज्जैन के अंकपात मार्ग पर स्थित श्री राम मंदिर में अपना आश्रम स्थापित किया। उनकी आध्यात्मिक शक्ति और तपस्या के कारण, उज्जैन के राजा ने उन्हें आश्रम के लिए भूमि प्रदान की। यहीं पर उन्होंने अपनी धुनी जलाई और समाजजनों के लिए मार्गदर्शन का केंद्र स्थापित किया।
गौधरदास जी महाराज ने अपना संपूर्ण जीवन समाज की सेवा में बिताया और अंकपात मार्ग स्थित श्री राम मंदिर में समाधि ली। आज यह स्थान गुजराती बलाई समाज के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। यहां उन्होंने पीपल और बरगद का पौधा लगाया, जो आज एक विशाल वटवृक्ष बन चुका है।
हर बारह वर्षों में सिंहस्थ कुंभ मेले के दौरान जब अखाड़े अंकपात मार्ग से गुजरते हैं, तो गौधरदास जी महाराज की समाधि के सामने उनके सम्मान में अखाड़ों के ध्वज झुकाए जाते हैं। यह परंपरा उनके प्रति समाज और संत समुदाय की गहरी श्रद्धा को दर्शाती है।
गौधरदास जी महाराज ने अपने अनुयायियों को सत्य, सेवा, और भक्ति का संदेश दिया। उन्होंने सिखाया कि जात-पात से ऊपर उठकर मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। उनकी शिक्षाएं आज भी समाज को एकजुट करती हैं और प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।